बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर -
व्यक्ति का जीवन कभी भी स्थिर नहीं है बल्कि लगातार परिवर्तित होता रहता है । पूर्व में यह परिवर्तन व्यक्ति की शारीरिक संरचना तथा कार्य प्रणाली में परिपक्वता को लाता है, जबकि बाद के जीवन में यह परिवर्तन बाल्यकाल की ओर प्रतिगमन करता हुआ होता है। इस प्रकार के परिवर्तन को मनोवैज्ञानिक भाषा में जरण (Aging) कहते हैं, जिसके अंतर्गत मानसिक व शारीरिक संरचना व उनकी कार्यशैली में परिवर्तन होता है।
उत्तर प्रौढ़ावस्था को वृद्धावस्था के नाम से जाना जाता है। यह जीवन की अंतिम अवस्था है। व्यक्ति में सामान्यतः दैहिक एवं मानसिक ह्रास प्रारंभ हो जाता है। इस प्रकार के ह्रास का प्रमुख कारण प्रेरणा का अभाव है। ऐसे व्यक्ति जो इस अवस्था में भी सीखने की चाह, स्वयं को आधुनिक समय के साथ जोड़कर रखने की प्रवृत्ति रखते हैं उनमें वृद्धावस्था का आगमन धीमी गति से होता है। वृद्धावस्था की शुरूआत शारीरिक ह्रास से प्रारंभ होती है व धीरे-धीरे मानसिक ह्रास होना शुरू हो जाता है।
हरलॉक ने - इस अवस्था को "जीवन विस्तार की अंतिम अवस्था" कहा है। जब व्यक्ति पूर्व जीवन की अत्यधिक वांछित आकांक्षाओं से दूर होना प्रारंभ करता है, वह अपने जीवन के बिताये गये दिनों को याद कर उपलब्धियों के सहारे जीवनयापन करना शुरू कर देता है तथा जीवन के शेष दिनों के जीने के लिये स्वयं को तैयार करता है। आयु वृद्धि के साथ व्यक्ति का व्यवहार भी परिवर्तित होता है तथा वह बच्चों जैसा साधारण व्यवहार करना शुरू कर देता है।
भारतवर्ष में यह कथन काफी प्रचलित है, कि "बच्चे व बूढ़े में कोई अंतर नहीं होता है। व्यक्ति जितने समय तक जीता है उस पर वृद्धावस्था का छोटा या लम्बा होना निर्भर होता है। इस अवस्था में आयु वृद्धि के साथ-साथ व्यक्ति की शक्ति, स्फूर्ति, काम करने की गति आदि कम हो जाती है परंतु अपने कौशल के द्वारा वे आसानी से क्षतिपूर्ति कर लेते हैं, जैसे— स्कूटर को वह धीमी गति से चलाकर दुर्घटना से बच सकता है। वृद्धावस्था का वह समय जब ह्रास धीमा होता है और क्षतिपूर्ति हो सकती है 'जरत्व' कहलाता है। ह्रास की गति तब तीव्र होती है तथा व्यक्ति शारीरिक, मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है या टूट चुका होता है और क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती है। उस काल को 'जरावस्था' (Old Age) कहते हैं। एक व्यक्ति कब जराग्रस्त होगा कहना मुश्किल है, हो सकता है कि जराग्रस्त होने से पूर्व उसकी मृत्यु हो जाए। अतः जरावस्था अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न हो सकती हैं, जिसे शारीरिक आयु से मानना उचित नहीं होगा। रहन-सहन की परिस्थितियों तथा चिकित्सा के उन्नत तरीकों के कारण स्त्री एवं पुरुष में जरावस्था का आगमन साठ-पैंसठ वर्ष की आयु के बाद होता है।
व्यक्ति में जब शारीरिक ह्रास के चिन्ह प्रकट होना शुरू होते हैं तो वे मानसिक रूप से निष्क्रिय होने लगते हैं। व्यक्ति के शरीर के भिन्न-भिन्न अवयवों का जीवन-काल भिन्न-भिन्न होता है, जैसे- स्त्रियों में अण्डाशय एक निश्चित समय तक काम करता है फिर निष्क्रिय हो जाता | दुर्घटना या बीमारी नेत्रों के लैंस की नमनीयता. शीघ्र खत्म कर देती है। बीमार स्त्रियों में रजोनिवृत्ति भी जल्दी हो सकती है।
इसी प्रकार मानसिक ह्रास में व्यक्तिगत भेद पाए जाते हैं। जैसे—अर्थग्रहण की क्षमता, शब्द भण्डार तथा ज्ञान प्राप्ति में ह्रास कम होता है। अंक परीक्षण में ह्रास अधिक होता है तथा स्मृति का ह्रास सबसे ज्यादा होता है। जरण की अवधि अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग समय पर होने के निम्नलिखित कारण हैं-
(i) आनुवांशिकता ।
(ii) लिंग।
(iii) जाति ।
(iv) वातावरण।
(v) पारिवारिक स्वरूप।
(vi) शिक्षा ।
(Different Categories of Old Age)
रेसमन के अनुसार वृद्धावस्था की तीन श्रेणियां हैं-
1. स्वायत्त (Independent ) - इस प्रकार की श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जिनमें आत्मिक स्फूर्ति होती है। ये सृजनात्मक होने के साथ-साथ सक्रिय होते हैं। ये व्यक्ति विशाल हृदय वाले एवं सक्रिय होते हैं। किसी भी प्रकार के परिवर्तन का इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। आयु वृद्धि के साथ-साथ ये अधिक समझदार हो जाते हैं। वैसे ये स्वभाव से बहुत ज्यादा सुसमायोजित तो नहीं होते हैं परंतु इनमें उत्साह भरपूर होता है। समाज में इस श्रेणी के वृद्धों की संख्या कम होती है।
2. समायोजित (Adjusted ) - ये व्यक्ति नदी के बहाव की ओर चलने वाले हैं अर्थात् वातावरण के अनुसार स्वयं को ढाल लेते हैं। इसलिये इनमें उत्साह बना रहता है। जब तक वातावरण उनके अनुकूल होता है तब तक वे क्रियाशील रहकर काम कर सकते हैं।
3. परायत्त (Dependent ) - ऐसे व्यक्ति स्वतंत्रतापूर्वक कार्य में असमर्थ होते हैं। ये दूसरों के सहारे चलते हैं तथा अनुकूल परिस्थितियों में ही कार्य कर सकते हैं।
अतः उपरोक्त श्रेणियों को जानने के बाद यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जरण के साथ-साथ व्यक्ति का व्यवहार, सोच, कार्यक्षमता का प्रभावं भी वृद्धावस्था को प्रभावित कर सकता है। ऐसे व्यक्ति जिन्हें वृद्ध होने का भय रहता है वे साधारणतया इस अवधि के साथ न्याय नहीं कर पाते हैं।
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